बास्ता के शौकीनों को मारना पड़ेगा अपना शौक..! वन महकमे ने इसे काटने व बिक्री पर सख्ती से लगाई रोक… बाजारों से गायब हुआ बास्ता
पंकज दाऊद @ बीजापुर। बास्ता के शौकीनों के लिए एक बुरी खबर ये है कि वन महकमे ने इसकी बिक्री और काटने पर सख्ती से रोक लगानी शुरू कर दी है। इस वजह से अब बास्ता ना तो बाजार और ना ही गांवों में सड़क किनारे बिकता दिख रहा है।
बास्ता यानि बांस के कोमल तने बस्तर में मौसमी सब्जी है। ये जुलाई और अगस्त माह में निकलता है। इसके शौकीन बहुत हैं लेकिन इस साल शौकिनों को ये शौक मारना पड़ रहा है। दरअसल, बीजापुर वन मण्डल (सामान्य) में इस साल बास्ता की तोड़ाई और बिक्री पर सख्ती से पाबंदी लगा दी गई है।
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दरअसल, बास्ता के स्प्राउट (अंकुर) को काट डालने से नए बांस की पैदावार नहीं हो पाती है। इससे बांस के जंगल का कम होना स्वाभाविक है। डीएफओ अशोक पटेल ने बताया कि भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 26, 33 के तहत बास्ता की कटाई दण्डनीय है। ये जमानती धाराएं हैं।
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डीएफओ ने बताया कि बांस के जंगल को बढ़ाने और बास्ता की कटाई पर पाबंदी लगाने वन महकमा लोगों को समझाईश दे रहा है। यही वजह है कि इस साल बाजार में बास्ता नहीं आ रहा है।
30 फीसदी बांस के जंगल
डीएफओ अशोक पटेल ने बताया कि वन मण्डल का एरिया 2,93103 हेक्टेयर है और इसमें करीब तीस फीसदी जंगल बांस के हैं। 1,59,006 हेक्टेयर आरक्षित वन, 1,09,592 संरक्षित वन एवं 24,504 हेक्टेयर नारंगी क्षेत्र है। बास्ता हर साल काटे जाएंगे, तो बांस के जंगल कम हो जाएंगे।
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6.30 करोड़ का राजस्व
डीएफओ के मुताबिक इस साल बांस के छह कूप काटे गए। सात लाख बांस की कटाई हुई। इसका आफसेट प्राइज 6 लाख 30 करोड़ रूपए है। पंजीकृत ठेकेदार एवं व्यक्ति नीलामी में इसे खरीद सकता है। बोली ऊंची लगी, तो आफसेट प्राइज से ज्यादा राजस्व मिलेगा। दूसरे जिले में वन विभाग की डिमाण्ड पर भी बांस भेजा जाता है।
बास्ता से कहां क्या बनता है
बस्तर में इसे सूखा और मसालेदार बनाया जाता है, जो काफी लजीज होता है। बस्तर के ओडिश से सटे गांवों में इसे एक पारंपरिक व्यंजन आमट में भी डाला जाता है। बास्ता बस्तर में ही नहीं बल्कि पूर्वी एशियाई देशों मसलन जापान, चीन और ताईवान में भी खाया जाता है। इसकी एक प्रजाति बैम्बूसा ओल्धामी की खेती भी होती है और इसका अचार भी बनाया जाता है।
नेपाल में फर्मेंटेटेड बास्ता के साथ आलू और बीन्स को खाया जाता है। असम में भी ये पारंपरिक सब्जी है। कर्नाटक के तुलूनाडू एवं मालनाड़ इलाके में इसकी बड़ी डिमाण्ड है। असम के दियून इलाके में इसे सूअर के मांस के साथ परोसा जाता है। इसके अलावा झारखण्ड एवं ओडिशा में भी ये काफी बिकता है।
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