पंकज दाऊद @ बीजापुर। यहां से 6 किमी दूर गोरना गांव में 15 साल बाद प्राथमिक शाला खुली और इस पहुंच विहीन घनघोर जंगल में एक बार फिर कखगघ की गूंज सुनाई पड़ी।
बताया गया है कि इस गांव में 2004 में स्कूल बंद हो गया था और फिर 2005 में सलवा जुड़ूम की हिंसा के चलते इसे खोला नहीं गया। बस्तर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष व स्थानीय विधायक विक्रम शाह मंडावी और कलेक्टर केडी कुंजाम की खास दिलचस्पी से यहां स्कूल खुलने का मार्ग प्रशस्त हो सका।
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इसे जल्द खोलने में बीईओ मो. ज़ाकिर खान के अलावा सीएसी दिलीप दुर्गम व राजेश मिश्रा की अहम भूमिका थी। सोमवार को इसका विधिवत लोकार्पण हुआ। 55 बच्चों का दाखिला पहले ही दिन हो गया। यहां गांव के ही युवा सुरेश कुरसम व सोनुराम हपका को दस हजार की तनखवाह पर ज्ञान दूतों के तौर पर पदस्थ किया गया।
इनका कहना है कि गांव के ही स्कूल में पढ़ाना सौभाग्य की बात है। उन्होंने कहा कि स्कूल से गांव में शिक्षा का माहौल बनेगा। बच्चों की ज़िंदगी को नई दिशा मिलेगी। इस अवसर पर बीईओ मो ज़ाकिर खान, सीएसी दिलीप दुर्गम, राजेश मिश्रा, राजेश सिंह, लोकेश्वर चौहान, विजयेन्द्र भदौरिया, रमन झा, किरण कावरे और गांव के लोग मौजूद थे।
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खुद तान दी झोपड़ी
गांव के ही लोगों ने खुद आगे आकर शाला के लिए झोपड़ी बना दी और छत पर ताढ़ के पत्ते डाल दिए। शिक्षा विभाग की ओर से टाटपट्टी, लेखन पठन सामग्री, थाली, ब्लैकबोर्ड, खेल सामग्री आदि मुहैया कराया गया। स्कूल में मध्याह्न भोजन भी पहले ही दिन से शुरू हो गया।
पढ़ाई से वंचित थे बच्चे
15 साल से गांव के बच्चे शिक्षा से वंचित थे। कुछ ही बच्चे शहर जाकर पढ़ सके। इस वज़ह से सोमवार को 14 बरस तक के भी कुछ बच्चों ने दाखिला लिया। स्कूल खुल जाने से गांव की नई पौध अब शिक्षित हो सकेगी।
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