नशेड़ियों की जन्नत कैसे हुई तबाह ? जानिए कैसे एक कोशिश ने बदल दी तस्वीर !
पंकज दाऊद @ बीजापुर। पंद्रह साल तक कभी नशेड़ियों के लिए स्वर्ग रहा ये परिसर अब हकीकत में फिर से शिक्षा का मंदिर बन गया है और इसके लिए डॉ राजेन्द्र प्रसाद वार्ड के पार्षद जितेन्द्र हेमला ने भरपूर कोशिश की।

डॉ राजेन्द्र प्रसाद वार्ड के डिपोपारा में 2007 में प्राथमिक शाला खुली। कई दिनों बाद एक बाउण्ड्री वॉल भी बनाई गई लेकिन गड्ढे के कारण से ये वाल छोटी पड़ गई। फिर क्या था। दीवार फांदकर शराबी और गंजेड़ी यहां आने लगे और तो और इसे खुले शौच के लिए भी लोग इस्तेमाल करने लगे।
इससे स्कूल आने वाले बच्चे और शिक्षक दोनों परेशान रहते थे। कुछ ही दिन पहले इसके कायाकल्प के बारे में पार्षद जितेन्द्र हेमला ने गौर किया और कोशिश शुरू की। इसके लिए वे बस्तर क्षेत्र विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष एवं विधायक विक्रम शाह मण्डावी से मिले।

प्रधान अध्यापिका नमिता झाड़ी बताती हैं कि स्कूल खुलने के दिन से उनकी पदस्थापना यहां हुई है। वे बताती हैं कि स्कूल भवन कुछ ही दिनों में खस्ताहाल हो गया। शराबियों के लिए ये परिसर खुला था। चहारदीवार भी छोटी थी। फिर परिसर में ही गड्ढा बन गया। सभी को परेषानी होती थी।
एक किचन कमरानुमा किचन शेड था। इसमें पानी रिसता था। भोजन सामग्री खराब हो जाती थी। शाला भवन के कमरों के दरवाजे और खिड़कियां टूटे हुए थे। अभी इस स्कूल में तीन शिक्षिकाएं और 51विद्यार्थी हैं।
अब ये काम हुआ
पुराने किचन शेड और भवन की मरम्मत कर दी गई है। नया किचन शेड बनकर तैयार है। नलकूप लगा दिया गया है। चहारदीवार ऊंची कर इस पर कंटीले तार लगा दिए गए हैं।

पार्षद जितेन्द्र हेमला बताते हैं कि नलकूप के पानी की पाइप लाइन परिसर के बाहर तक ले जाई जाएगी ताकि आसपास के लोग इसका इस्तेमाल कर सकें। पूरे परिसर की साफ सफाई और रंगरोगन कर दिया गया है। अभी यहां टेबल बेंच लाए जाएंगे। इसके लिए एक और कमरा पढ़ाई के लिए बनाया जाएगा।
सोच को पहनाया अमली जामा
यहां कलेक्टोरेट के राजस्व विभाग में बतौर डाटा एण्ट्री ऑपरेटर जितेन्द्र हेमला (29) ने सात साल सेवा दी लेकिन उन्हें ये काम रास नहीं आया। इसी मई 2019 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया ताकि जनसेवा के लिए उन्हें पर्याप्त समय मिल सके। कांग्रेस ने उन्हें टिकट भी दी।
मूलतः गंगालूर निवासी जितेन्द्र बताते हैं कि उन्हें शुरू से ही लोगों का काम निःस्वार्थ भाव से करने की इच्छा थी और नौकरी में रहते समय नहीं मिल पाता था। उनके माता-पिता दोनों कांग्रेसी थे। पिता सिक्का मांझी परगना मांझी थे और जिला पंचायत सदस्य भी। उनकी इच्छा जितेन्द्र को राजनीति के जरिए जनसेवा में लाने की थी।
जितेन्द्र बताते हैं कि इसी वजह से उन्होंने नौकरी छोड़ दी। उनकी मां पाण्डरी बाई जनपद अध्यक्ष थीं। वे कहते हैं कि वे अपने कार्यकाल में पूरे वार्ड में जरूरी सुविधाएं बहाल कर लेंगे।
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