नक्सलगढ़ में ढाबा चला रहीं महिलाएं, स्वाद ऐसा कि कलेक्टर-CEO भी पहुंचे ग्राहक बनकर… जानिए अफसरों ने खाने में क्या आर्डर किया ?
दंतेवाड़ा @ खबर बस्तर। छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में आदिवासी महिलाओं ने महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश की है। घरेलू कामकाज और खेतीबाड़ी के कामों में हाथ बटाने के अलावा जिले की महिलाएं अब ढाबा खोलकर अच्छी आय प्राप्त कर रहीं हैं।
गीदम-बीजापुर नेशनल हाईवे पर बड़े कारली ग्राम पंचायत में स्व सहायता समूह की महिलाएं मनवा ढाबा का संचालन कर रही हैं। बेहतरीन स्वाद और साफ सफाई की वजह से बेहद कम समय में इनका ढाबा क्षेत्र में लोकप्रिय हो चुका है।
समूह की महिलाओं के व्यंजनों का स्वाद चखने दंतेवाड़ा कलेक्टर विनीत नंदनवार भी मनवा ढाबा पहुंचे। उनके साथ जिला पंचायत सीईओ आकाश छिकारा समेत अन्य अधिकारी भी मौजूद थे। कलेक्टर की गाड़ी जब मनवा ढाबा पहुंची तो समूह की महिलाएं भी हैरान रह गईं।
कलेक्टर ने सर्वप्रथम स्व सहायता समूह की दीदियों से मुलाकात की और पूरे परिसर का भ्रमण किया। उन्होंने मनवा ढाबे में भोजन करने की इच्छा जाहिर की तो समूह की महिलाओं ने उत्साहपूर्वक कलेक्टर व जिला पंचायत सीईओ को भोजन कराया।
अफसरों ने इन व्यंजनों का स्वाद लिया
मनवा ढाबे में कलेक्टर और सीईओ ने आम ग्राहकों की तरह बैठकर भोजन किया। दोनों अफसरों ने ढाबे में चावल, रोटी, दाल, सलाद, पापड़ के साथ ही दीदियों के हाथों से बनी लाल भाजी, एग करी, चिकन और बिरयानी का लुत्फ उठाया और इसका भुगतान भी किया।
कलेक्टर नंदनवार ने कहा कि जिस तरह से आप लोगों द्वारा ढाबा का संचालन किया जा रहा है वह प्रशंसनीय है। उन्होंने महिलाओं की इस आजीविकामूलक पहल को महिला सशक्तिकरण की दिशा में अनुकरणीय कदम बताते हुए अच्छा काम करने के लिए दीदियों को बधाई और शुभकामनाएं दी।
बता दे कि गीदम ब्लाॅक के बड़े कारली ग्राम पंचायत में स्थित गौठान से लगे परिसर में मनवा ढाबा का संचालन किया जा रहा है। लगभग 3000 वर्ग फिट एरिया में 16 लाख की राशि से डीएमएफ मद से ढाबा का निर्माण किया गया है, जिसे बॉस बोडीन स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा चलाया जा रहा है।
ढाबे से लाखों का टर्नओवर
इस ढाबे का संचालन समूह की कुल 10 महिलाएं कर रहीं हैं। ढाबे की देख-रेख से लेकर खाना बनाने और साफ-सफाई का जिम्मेदारी भी महिलाएं ही संभालती हैं। ढाबे में रोजाना 20 से 24 हजार रुपयों की बिक्री हो रही है। ऐसे में महिलाएं प्रति महीने 7 से 8 हजार रुपयों की आय अर्जित कर रही हैं।
स्व सहायता समूह की सदस्य श्रीमती अर्चना कुर्राम बताती है कि इससे पहले वो सिर्फ खेती करती थी। लेकिन जब से वो इस स्व सहायता समूह में जुड़कर काम कर रही है, उसमें पहले से ज्यादा आत्मविश्वास बढ़ गया है।
वे कहती हैं कि अब तक उनके समूह को गोबर बेचकर डेढ़ लाख तक फायदा मिल चुका है। आगे भी वो इसी तरह काम करना चाहती हैं।