यूरोपियन केंचुआ बना रहा जैविक खाद, वर्मी कंपोस्ट की बिक्री शुरू
पंकज दाऊद @ बीजापुर। गोधन न्याय योजना के तहत गोठानों में वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए यूरोपियन देशों के केंचुए की प्रजाति इसेनिया फोएटिडा का इस्तेमाल स्वसहायता समूह कर रहे हैं।
हालांकि, अफ्रीकन केंचुआ इयूडिलस एनजेनियल कंपोस्ट बनाने के लिए ज्यादा कारगर है लेकिन इसकी सप्लाई नहीं हो पाने से यूरोपियन केंचुए का ही इस्तेमाल किया जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए सतह पर रहने वाले केंचुए ज्यादा कारगर हैं। लाल केंचुआ या इसेनिया फोएटिडा के अलावे अफ्रीकन केंचुए या दोनों का इस्तेमाल किया जाता है।
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आरएईओ खिलेन्द्र साहू ने बताया कि कृषि विभाग के तुमना स्थित वर्मी कंपोस्ट उत्पादन केन्द्र में कलेक्टर रितेश अग्रवाल के निर्देश पर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने सहयोग किया और लाल केंचुए उपलब्ध करवाए। कृषि विभाग ने बेड आदि की व्यवस्था की और तकनीकी मार्गदर्शन महिला स्व सहायता समूह को दिया।
आरएईओ खिलेन्द्र साहू ने बताया कि डेढ़ माह पहले समूह की महिलाओं ने उद्यानिकी विभाग को आठ रूपए किलो की दर से 32 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट बेचा। मां लक्ष्मी महिला स्व सहायता समूह में दस सदस्य हैं।
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बताया गया है कि जिले में 106 गोठान हैं और इन गोठानों में खाद बनाने वाली महिलाओं को कलेक्टर रितेश अग्रवाल के आदेश पर 19 से 24 जुलाई तक प्रशिक्षण दिया गया। कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों एवं आरएईओ ने ट्रेनिंग दी।
आखिर इसमें क्या है खासियत
अफ्रीकन केंचुआ लाल केंचुए से बड़ा और गाढ़े रंग का होता है। लाल केंचुए की मृत्यु दर अफ्रीकन केंचुए की तुलना में कम होती है। अफ्रीकन केंचुए को बेहतर इसलिए माना जाता है क्योंकि ये कम समय में ज्यादा उत्पादन देता है और ये ज्यादा बच्चों को जन्म देता है।
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